परिचय –

अचानक बेहोश हो जाना और बेहोश होने के साथ ही थोड़ी बहुत अकड़न होने को ‘अपस्मार’ या ‘मिर्गी’ कहते हैं। बेहोशी (गसी) आने से पहले रोगी को पता नहीं चलता कि उसे दौरा कब पड़ने वाला है। बातें करते-करते, बोलते-बोलते या चलते-चलते रोगी एकाएक बेहोश हो जाता है और उसे अकड़न होने लगती है। कोई-कोई बहुत जोर से चिल्ला कर बेहोश हो जातें हैं।
रोग के कारण

अधिकतर कारण अज्ञात होते हैं। लाक्षणिक मिर्गी-
1. स्थानीय कारण-प्रमस्तिष्क अर्बुद, प्रमस्तिष्क विद्धि या सिथति। प्रमस्तिष्क वाहिका दुर्घटनाएँ, प्रमस्तिष्क थ्रोम्बोसिस, प्रमस्तिष्क अंतःशल्यता, प्रमस्तिष्क अंतःशल्यता के कारण। मस्तिष्कावरण शोथ, ऐन्सेफेलाइटिस एवं पागलपन का व्यापक अंगघात । प्री-सेनाइल डेमेन्टिया ।
2. व्यापक कारण -प्रमस्तिष्क अनॉक्सिता श्यावासावरोध, पूर्ण हृदय रोध, कार्बन- मोनोआक्साइड विषाक्तता, यूरीमिया, अल्प ग्लूकोज रक्तता, टिटेनी, यकृतपात, एक्लम्पसिया व विषाक्त पदार्थों का प्रभाव, तीव्र ज्वर, गोलकृमि रोग, दाँत निकलना आदि कारणों से।
#अज्ञात हेतुक मिर्गी – जिसका कारण अज्ञात है।
रोग के लक्षण

इस रोग में रोगी अचानक जमीन पर गिर पड़ता है। पहले अकड़न से रोगी की गर्दन टेढ़ी पड़ जाती है। ऑंखें फटी-फटी सी और पलकें स्थिर हो जाती हैं। मुँह में फेन भर जाता है। रोगी बार-बार हाथ-पैर पटका करता है। दाँती लग जाती है या किसी-किसी की जीभ बाहर निकल आती है। किसी-किसी को अनजाने में पेशाब और पाखाना भी हो जाता है। रोगी को श्वास प्रश्वास में कष्ट होता है। ऐसी स्थिति 10-15 मिनट रहती है या कभी-कभी 2-3 घण्टे भी लग जाते हैं। इसके बाद दौरा घटना शुरू होता है। श्वास-प्रश्वास आसानी से आने लगता है और रोगी होश में आने लगता है या उसे गहरी नींद आ जाती है।
बड़ी मिर्गी (Major Epilepsy) –

इसकी शुरूआत बचपन में या युवा में (25 वर्ष से कम उम्र में) होती है। इसमें प्रथम कान में झनझनाहट या हाथों में झनझनाहट या उदर में एक विचित्र अनुभव के रूप में होता है। रोगी तुरन्त ही चीख के साथ जमीन पर गिर पड़ता है और बेहोश हो जाता है। रोगी का शरीर कड़ा हो जाता है। अन्त में सम्पूर्ण शरीर में आक्षेप आने लगते हैं। जीभ निकल आती है। कट भी सकती है। मुँह से झाग आता है।
लघु मिर्गी (Minor or Patitmal Epilepsy)-

यह सामान्यतः कम होती है। इसकी शुरूआत बचपन में या किशोरावस्था में होती है। इसमें क्षणकालीन बेहोशी लेकिन कोई आक्षेप नहीं होता है। रोगी हठात् कुछ क्षणों के लिये (10-15 सेकेण्ड) भावशून्य हो जाता है और फिर होश में आ जाता है।
रोग की पहचान

रोगी को दौरे आते हैं तो उसका मुँह एक तरफ को घूम जाता है, आँखें पथरा जाती हैं, दाँती लग जाती है, मुट्ठियाँ कस जाती हैं और रोगी ओं-ओं गों-गों की आवाज किया करता है तथा बेहोश भी हो जाता है। इन लक्षणों से रोग की पहचान हो जाती है। इसके अतिरिक्त डॉक्टर मिर्गी रोगी की निम्न जाँचें करने के लिये भी कह सकता है-
1. रक्त की जाँच |
2. छाती का एक्स-रे ।
3. ई. ई. जी. । 4. सी. टी. स्कैन ।
5. एम. आर. आई. ।
रोग का परिणाम

मरीज की जीभ दाँतों के नीचे आ जाने से कट सकती है। दौरे के कारण बेहोशी की स्थिति में जमीन पर गिर जाने से फ्रैक्चर, चोट या दाँत टूटने का खतरा होता है। कंधे का या कमर का जोड़ सरक सकता है। वाहन चलाते समय, पानी में तैरते समय या आग के पास मिर्गी का दौरा पड़ने पर दुर्घटना होने की सम्भावना रहती है और जान को खतरा हो सकता है। दौरे के समय उल्टी हो जाने से उल्टी श्वसन मार्ग में फैल सकती है जिससे श्वास मार्ग अवरुद्ध होकर मौत हो सकती है।