असामान्य रूप से तीव्र गति का अथवा अनियमित हृदय स्पन्दन, जिसे रोगी महसूस करता है, दिल धड़कना (पालपिटेशन Palpitation) कहलाता है। इसे ‘हृदय सन्दन’, ‘धड़कन’, ‘हृदय का तीव्र’ एवं ‘बलपूर्वक संकुचन आदि नामों से भी जाना जाता है।
अपने ही हृदय की धड़कन हमारी इच्छा विरुद्ध हमें सुनाई देती रहे उसे ही हृदय का तेज गति से धड़कना कहते हैं। प्रत्येक रोगी अलग-अलग ढंग से इस अवस्था के बारे में बताते है, कोई इसे ‘साँस फूलना’ कहते हैं तो कोई ‘फड़फड़ाना’, ‘छाती का उड़ना’, ‘छाती पर लगातार चपत लगने जैसा’, ‘घोड़े की दौड़ जैसा’, छाती में अलग-अलग आवाज आना आदि कहते हैं। ऐसी धड़कन विशेषकर रात में तथा व्यक्ति के अंतर्मुख होने पर अधिक अर्थात् कुछ विचार करते समय अधिकतर महसूस होती है।

Palpitations causes
शरीर विज्ञान के अनुसार
- तनाव एवं चिंता ।
- भरपेट भोजन के बाद ।
- अधिक परिश्रम तथा व्यायाम से
- अधिक चढ़ाई पर चढ़ने से ।
- लैंगिक उत्थान ।
- मन पर दबाव लाने वाली परिस्थितियों में साक्षात्कार, परीक्षा आदि ।
- उत्तेजक पदार्थों का सेवन-चाय, कॉफी, धूम्रपान, मद्यपान आदि से।
- शारीरिक बीमारियाँ-हृदय के बाल्वों में विकार, कृत्रिम बाल्व के कारण, जन्म- जात हृदय विकृति आदि से।
Palpitations symptoms
इस रोग में रोगी का दिल सामान्य से अधिक धड़कता है। धड़कन के साथ बायें कंधे में दर्द होता है। दिल की धड़कन से (अधिकता) रोगी को कष्ट होता है। आक्रमण के समय हृदय प्रदेश (Cardiac region) पर कुछ न कुछ पीड़ा की अनुभूति होती है। हृदय धड़कन को रोगी स्वयं सुन सकता है। रोग की स्थिति में होंठ और कनपटियों लाल हो जाती हैं। रोग का आक्रमण कुछ सेकेण्डों से लेकर 2-3 घण्टों तक रहता है। रोगी का सिर चकराता है। रोगी के थोड़ी दूर चलने, सीढ़ियाँ चढ़ने एवं थोड़े परिश्रम मात्र से ही दिल धड़कने लगता है। रोगावस्था में हृदय

रोग की पहचान
इसमें रोगी का हृदय जोर-जोर से और जल्दी-जल्दी धड़कता है। धड़कने से रोगी को कष्ट होता है। इन लक्षणों से इसे पहचान सकते हैं। सामान्यतया ऐसे रोगियों की इलैक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ECG), छाती के एक्स-रे, खून की जाँच, इकोकार्डियोग्राफी, होल्टर मॉनिटरिंग आदि जाँच की जाती है।

रोग का परिणाम
जिन्हें यह रोग होता है उन्हें रोग के बार-बार होने की सम्भावना रहती है। विकृति जीवन- पर्यन्त रहती है। अधिक धड़कन होने पर हृदय स्थान पर कुछ पीड़ा, सिर चकराना, कान में शब्द होना, अधिक बेचैनी आदि विकार उपद्रव स्वरूप होते हैं।
