What is tuberculosis
Tuberculosis माइक्रो बैक्टीरिया ट्यूबरकुलोसिस नामक एवं वैसीलस द्वारा हुई एक संचारणशील (Communicable) व्याधि है। वैसे यक्ष्मा शरीर के करीब-करीब सभी अंगों को अक्रान्त कर सकता है, लेकिन फेफड़े सबसे अधिक अक्रान्त होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज यक्ष्मा दुनिया का सबसे बड़ा संचारी रोग है। आज यह व्याधि किसी न किसी रूप में प्रायः प्रत्येक घर में मौजूद है। कुपोषण, अस्वास्थ्यकरे रहन-सहन तथा उचित उपचार की कभी इसके प्रमुख कारण है।
Causes of tuberculosis
माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु इस रोग को पैदा करता है। जीवाणु शरीर में प्रवेश कर कई महीनों से लेकर कई वर्षों तक बिना रोग पैदा किये रह सकता है। जैसे ही उस व्यक्ति की शारीरिक प्रतिरोधक शक्ति (Immunity) कम होती है यह जीवाणु संख्या में वृद्धि कर रोग उत्पन्न कर देते हैं। सहायक कारण-
1. जिन लोगों का रहन-सहन निम्न स्तर का है।
2. गरीबी, अशुद्ध वायु, सूर्य के प्रकाश की कमी, भीड़-भाड रोग के प्रसार में सहायक होते हैं।
3. पहले से कमजोर एवं शराबी व्यक्तियों में यह रोग जल्दी होता है।
4. धूल एवं धूम्रपान वातावरण में काम करने वाले, बड़े-बड़े कारखानों व मिलों आदि में काम करने वाले व्यक्तियों में इसका प्रसार अधिक होता है।

Symptoms of tuberculosis
कभी-कभी प्रारम्भिक अवस्था में इसके कोई लक्षण प्रकट नहीं होते किन्तु अक्सर यह रोग निम्न लक्षणों के साथ शुरू होता है-
1. हल्का बुखार आना तथा बना रहना। (शाम के समय बुखार हो जाना)
2. खाँसी आना।
3. भूख न लगना एवं वजन कम होना।
4. सीने में दर्द।
5. खाँसी में खून आना।
6. सौंस फूलना।
7. रात में खाना ज्यादा आना
8. गले में गोठे नजर आना।
रोगी में इनमें से सभी लक्षण हो सकते हैं। खास बात यह है कि इन लक्षणों को ही आधार मान कर टी. बी. का इलाज करने में धोखा भी हो सकता है। इनको देखकर आशंका व्यक्त की जा सकती है। पुष्टि बलगम, रक्त, एक्स-रे (X-Ray) आदि की जाँच के बाद ही होती है।
खाँसी-सूखी या बलगम वाली होती है। बलगम पहले पतला व श्लेष्मा युक्त होता है। जब आगे चलकर कैविटी बन जाती है तब पस की तरह पीला और गाढ़ा हो जाता है। धीरे-धीरे इसमें खून भी मिला हुआ आता है। जब खाँसी के वेग से कैविटी की दीवार क आस-पास की रक्तवाहिनी फट जाती है तो खसी के साथ अधिक मात्रा में खून आने लगता है।
नोट
कुछ बच्चों में जो कुपोषण का भी शिकार होते है और जिनको काली खाँसी, खसरा या एच. आई. वी. संक्रमण हो उनमें मिलयरी ट्यूबरकुलोसिस होने की अधिक सम्भावना होती
रोग की पहचान
1. रोगी से बीमारी के बारे में विस्तार के साथ व साथ में परिवार में किसी और सदस्य को तो रोग नहीं है. के बारे में पूछे।
2. शारीरिक जाँच (Clinical examination) से।
3. जॉच खून, पेशाब, थूक, एक्स-रे ।
इस रोग में यह निश्चित करना आवश्यक है कि रोग सक्रिय है अथवा नहीं। बलगम में जीवाणु मिलने पर निदान पूरी तरह हो जाता है। किंतु जिन रोगियों में जीवाणु नहीं आता परन्तु एक्स-रे फिल्म रोग को दर्शाती है. उन रोगियों में भी टी. बी. का इलाज करना चाहिये। ट्यूबरकुलीन टेस्ट (मोन्टुक्स जाँच Mantoux text भी) तथा कल्चर और सहनशीलता जाँच रोग निदान में सहायक है।
रोग का परिणाम
1. अगर रोगी शुरू से ही अपना उपचार पूरी लगन व पूरे समय तक करा लेता है अथवा लेता है तो वह बिलकुल ठीक हो जाता है। जो रोगी उपचार नहीं करवाते या दवाइयाँ पूरे समय तक नहीं खाते उनमें बीमारी ज्यादा हो जाती है व अन्य उपद्रव (Complications) भी हो सकते हैं।
2. इस रोग का उपचार पूरी तरह सम्भव है, अगर रोगी चिकित्सक का साथ दे। 3. यदि रोगी को मधुमेह भी साथ में है तो उसे मधुमेह का भी इलाज करना चाहिये।
4. पल्मोनरी ट्यूबरक्युलोसिस से ट्यूबरकुलर एम्पाईमा हड्डी व संधि की टी. बी. वृक्क की टी. बी. उदर की टी. बी. ट्यूबरकुलर मैन्जाइटिस आदि हो सकती है।
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