KAMLA- जॉण्डिस / इक्टेरस / पीलिया / शरीर का  पीला पड़ जाना

रोग का परिचय

इस रोग में शरीर की चमड़ी का रंग पीला पड़ जाया करता है। इसमें रोगी की आँखें, सारा शरीर और मूत्र पीला हो जाया करता है। रोगी के मुँह का स्वाद कड़वा हो जाता है, जीभ पर मैल का लेप-सा चढ़ जाता है और भूख कम हो जाती है।

Jaundice or Icterus refers to the yellow pigmentation of the skin or and sclera by bilirubin. Clinically jaunce is being classified into-

#Cholestatic or obstructive jaundice

#Hepotocellular jaundice.

रोग के कारण

यह जिगर की खराबी से उत्पन्न होता है। जिगर की पित्त नली में जब पथरी (Stones) अटक जाती है या किसी बीमारी के कारण पित्त की नली का रास्ता छोटा हो जाता है तो पित्त आँतों में न पहुँचकर खून में ही सीधा मिलने लगता है। खून में इस पित्त के मिलने से ही शरीर में पीलापन छा जाया करता है। वैसे यह रोग आमतौर पर पौष्टिक भोजन की कमी, पाचन क्रिया की गड़बड़ी, बहुत ज्यादा रक्तस्राव या वीर्य नाश करना, मलेरिया बुखार का जीर्ण रूप आदि के कारण पीलिया रोग

हो जाया करता है। इसके अतिरिक्त स्त्रियों में मासिक धर्म का अधिक होना, प्रसव के समय अत्यधिक रक्त का निकल जाना, टायफाइड, रक्त संचार सम्बन्धी रोग, संखिया, फास्फोरस जैसे घातक विषों का सेवन जॉण्डिस के कारण हैं।

रोग के प्रमुख लक्षण

इसमें रोगी का चेहरा, आँखें, नख (Nails), मल-मूत्र, चर्म (सारा शरीर) हल्दी जैसा पीला हो जाता है। उसकी भूख मारी जाती है। शरीर का भार घट जाता है, रोगी दुर्बल हो जाता है, वह जरा सी मेहनत करता है थक जाता है, उसे मामूली बुखार रहता है। सुस्ती छाई रहती है। नाड़ी की गति 40-50 प्रति मिनट हो जाती है। सही उपचार न होने पर हाथ-पैर, मुँह आदि में सूजन भी आ जाती है । रोगी की चुस्ती समाप्त हो जाती है, साँस कम और थोड़ी आती है ।

प्रकार के अनुसार लक्षण- हीमोलिटिक जॉण्डिस में- एनीमिया, पीलापन और तिल्ली का बढ़ना ये तीन लक्षण मिलते हैं। ऑव्सट्रक्टिव जॉण्डिस में-शुरू में पीलिया कम होता है परन्तु धीरे-धीरे यह बढ़कर बड़ा रूप ले लेता है।

हिपेटोसेलुलर जॉण्डिस -इसमें पीलिया कम से लेकर बहुत ज्यादा तक हो सकता है।

रोग की पहचान

रोग के सही निदान के लिये निम्न जाँचें आवश्यक हैं-

1. रक्त-लीवर फंक्शन टैस्ट

2. मूत्र परीक्षा

3. मल परीक्षण

4. एक्स-रे पेट व छाती का 5. लीवर बायोप्सी

6. पूरे पेट का अल्ट्रासाउण्ड

रोग का परिणाम

1. यदि इस रोग का इलाज न किया जाये तो इसमें ‘शोथ’ होने का डर रहता है। रोगी की त्वचा और श्लैष्मिक झिल्ली से ‘रक्तस्राव’ होने लगता है।

2. ज्यादा दिनों तक पीलिया रहने पर लीवर कोशिकायें अधिक क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे लीवर का मेटाबोलिक कार्य गड़बड़ा जाता है और रोगी को यकृत कोशकीय फेल्योर हो जाता है।

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