क्या है ?- ELECTRIC INJURY

आजकल बिजली का उपयोग दिन-प्रतिदिन घरों में काम आने वाली चीजों, उद्योगों, मेडिकल एवं अन्य सभी क्षेत्रों में बढ़ता जा रहा है। बिजली का झटका अधिकतर दुर्घटनावश या आत्महत्या के प्रयास के फलस्वरूप लगता है।
बिजली घर में काम करने वालों में ऐसे अचानक बिजली द्वारा यंत्रणा होने आदि कई बातों का ध्यान रखकर अभिघात का अनुमान लगाया जाता है। जैसे-वोल्टेज, करेंट का इसका समय बिजली लगने के मार्ग जहाँ से स्पर्श हुआ हो।
Electric injury causes
बिजली के खुले तारों से शरीर के किसी अंग का स्पर्श होने पर बिजली का करेंट लगता है। क्योंकि खुले तार और जमीन के बीच शरीर एक सुचालक (Good Conductor) का काम करता है। इलेक्ट्रिक करेंट दो तरह से नुकसान पहुँचाता है-
1. इलेक्ट्रिक शॉक द्वारा।
2. थर्मल चोट से नुकसान प्राय: करेंट का प्रकार उसकी फ्रीक्वेन्सी वोल्टेज कितने क्षेत्र में छुआ गया है एवं व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है।
Electric injury Symptoms
करेंट से मॉसपेशी में संकुचन होने के कारण, वह आदमी को दूर फेंक देता है, जिससे वह दूर जाकर गिरता है और उसे चोट लग सकती है। कुछ दिनों के बाद जलने से गहराई में स्थित ऊतकों (Tissues) में नेक्रोसिस हो जाती है। करेंट लगने से रक्तवाहिनियों में रक्त का जमाव हो जाता है एवं शरीर के अन्य अंगों तथा ऊतकों की रक्त आपूर्ति बन्द हो जाती है। सबसे अधिक आघात हृदय पर व नाडी संस्थान पर होता है। नेत्र गोलक और श्वास-प्रश्वास पर प्रभाव पड़कर सन्यास की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कभी-कभी तत्काल मृत्यु हो जाती है। यदि 350 वोल्ट से ऊपर के बिजली की शक्ति से प्रभावित हुआ हो। सबसे अधिक हानि जहाँ से विद्युत स्पर्श हो नाड़ियों का अभिघात (जल जाने) से होता है। स्पर्श व निकास के दोनों अंश दग्ध हो जाते हैं। कभी सीधी पेशियों पर प्रभाव पड़ता है। यदि सिर व गले पर करेंट लगा है तो मोतियाबिन्दु हो सकता है। इसके अतिरिक्त करेन्ट लगने से श्वसन क्रिया में रुकावट हृदय गति का बन्द होना, बेहोशी के साथ पक्षाघात एवं हल्के फुल्के शॉक में बेचैनी तथा घबराहट हो सकती है।
HEAT STROKE-लू लगना
Note डी. सी. करेन्ट से ए. सी. का प्रभाव अधिक होता है। डी. सी. से झटके लगते हैं और ए. सी. से चिपक जाता है और विद्युत न छोड़ने तक विद्युत प्रभावित करती है। पॉवर शॉक. अधिक शक्तिशाली होता है। यदि रोगी बच जाता है तो वह विचित्र दशा में मिलता है।
उपचार-
व्यक्ति को करेंट वाले स्थान से तुरन्त हटायें इसके लिए उसे खुद छुएँ नहीं वरना करेंट लग सकता है उसे किसी लकड़ी से छुड़ायें कोई अन्य सम्भावना न मिलने पर उसे लकड़ी से धक्के देकर पृथक करना चाहिए या हाथ में शुष्क कपड़े लपेटकर तब छुड़ाना चाहिए या कागज के मोटे पैड के सहारे हटाना चाहिए कभी भी उसे सीधे हाथ से नहीं पकड़ना चाहिए अन्यथा रोगी की मृत्यु हो सकती है।
बाद की चिकित्सा स्थिति के अनुसार तत्काल आरम्भ करनी चाहिए साथ में यह भी पता लगाना चाहिए कि नाड़ी गति हानि कहाँ-कहाँ हुई है। यदि रोगी का श्वास बन्द हो रहा हो या हो गया हो तो कृत्रिम श्वास-प्रश्वास दिलाने की
चेष्टा करें। यदि आवश्यक समझें तो मुँह में मुँह (Mouth to Mouth) से श्वास खींचने व निकालने की चेष्टा करें और जब तक रोगी हॉस्पीटल न पहुँच जाये यह क्रिया जारी रखनी चाहिए। हृदय के क्षेत्र पर मालिश कर उसे संचालित करें। हास्पीटल में यदि हृदय क्रिया अवरुद्ध हो रही हो तो मेकेनिकल विधि से उसे संचालन करने की विधि अपनानी चाहिए। यदि शॉक अभी तक बना हो तो उचित चिकित्सा करें द्रव व इलेक्ट्रोलाइट की आवश्यकता की पूर्ति (आई. वी. फ्लूड से करें। मूर्च्छा दूर करने के लिए सदमे का इलाज करें। उसे गरम दूध या चाय पीने को दें।
जले हुए स्थान पर जलने की चिकित्सा त्वरित प्रारम्भ करें इसके लिए उचित मरहम पट्टी करें। इन्फैक्शन से बचने के लिए उचित एण्टीबायोटिक दें। रीनल फेल्योर की स्थिति में हीमोडायलिसिस की आवश्यकता होती है।

बचाव-
विद्युतीय अभिघात या इलेक्ट्रिक करेन्ट से बचने के लिए निम्न व्यवस्थायें अपनानी चाहिए-
(I) बिजली के उपकरणों की सुरक्षात्मक जाँच आवश्यक है।
(2) फ्यूज अच्छी तरह से लगायें।
(3) बिजली का काम करने के दौरान रबड़ के दस्ताने पहनें।
(4) गीले स्थान पर या गीले कपड़े पहन कर बिजली का कार्य न करें।
(5) पैरों में रबड़ की चप्पल अवश्य पहनें।
(6)हमेशा उच्च कोटि के उपकरणों (यथा-प्लास, टेस्टर आदि) का प्रयोग करें।