रोग परिचय

-खाना खाने की इच्छा (रुचि) न होने को अरुचि कहते हैं।अनोरेक्सिया, एक ऐसी गंभीर समस्या है जो आजकल युवाओं के बीच बढ़ती जा रही है। यह एक खतरनाक बीमारी है जो लोगों को खुद को जीवन की रूचि से वंचित कर देती है। अनोरेक्सिया न केवल एक शारीरिक समस्या है, बल्कि यह मानसिक स्तिथि भी है जो व्यक्ति की जीवनशैली, संबंध और काम क्षमता पर प्रभाव डालती है।

रोग के प्रमुख कारण
कब्ज, चिंता, भय तथा क्रोध, घबराहट, हिस्टीरिया, संक्रामक ज्वर (जैसे-न्यूमोनिया, फ्लू, चेचक, खसरा, मलेरिया आदि), आमाशय प्रदाह (गेस्ट्राइटिस), गैस्ट्रिक अल्सर, आमाशय और आन्त्र के विभिन्न विकार तथा कैंसर आदि के कारण यह रोग होता है। अक्सर यह रोग जिगर और आमाशय की खराबी के कारण होता है। अरुचि रोग की उग्र अवस्था का सबसे बड़ा कारण खुद रोगी ही होता है। रोगी की अपनी लापरवाही, गैर जिम्मेदारी से रोग उग्र अवस्था तक पहुँचकर मारक सिद्ध होता है। यदि अरुचि रोग थोड़ा उग्र हो जाये तो माइस्थेनिया (Myasthenia) के नाम से पुकारा जाने लगता है।

रोग के प्रमुख लक्षण

इस रोग में भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है। यदि रोगी जबर्दस्ती भोजन करने बैठ भी जाये तो दो-चार कौर खाने के बाद कुछ भी खाने की इच्छा नहीं करती। बिना कुछ खाये। भी उसका पेट भारी और भरा हुआ मालूम पड़ता है। बार-बार खट्टी डकारें आती हैं, कभी-कभी मुँह में जल भी भर आता है। हल्का भोजन लेने पर भी पेट भारी लगने लगता है। किसी काम में मन नहीं लगता है, थोड़ा परिश्रम करने पर ही बहुत अधिक थकावट प्रतीत होने लगती है। भोजन न करने पर भी भूख नहीं लगती है। कब्ज बनी रहती है, शरीर का वजन घटता जाता है और रोगी दिन-प्रतिदिन सूखता चला जाता है।
रोग की पहचान

भूख की कमी के साथ कब्ज/मलावरोध, भार की कमी, बेचैनी, किसी काम में मन न लगना, खाना खाने को जी न करना आदि लक्षणों से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
रोग के परिणाम

वैसे यह रोग सुख साध्य है, पर यदि रोग अति कठिन अवस्था में पहुँच जाये तो रोगी 1-2 सप्ताह में ही मर जाता है। इस रोग की जीर्णा- वस्था काफी लम्बे समय तक चलती रहती है। यदि रोग का इलाज न किया जाये तो रोगी की ‘रस’, ‘रक्त’, ‘मॉस’ आदि धातुयें सूखने लगती हैं।