1.जलना [BURN]

BURN क्या है?

Burn

भाप ऊष्मा ठोस अथवा तरल या अग्नि की लौ के सम्पर्क से त्वचा या उससे भीतरी भागों को जो प्रतिघात पहुँचता है उसे जलना (Burns) या दग्ध कहते हैं। इसके अतिरिक्त यह प्रतिघात किरणन, रासायनिक वस्तु व विद्युत के कारण भी हो सकता है।

 जलने को सामान्य रूप से त्वचा का नष्ट होना माना जाता है। बर्न्स त्वचा की ऐसी चोट है जो कि अत्यधिक ताप या रसायन (अम्ल अथवा शार) या फिर बिजली द्वारा जलने पर होती है। जलने का स्थान विशेष के अनुसार बर्न्स में निम्न लक्षण उत्पन्न होते हैं-

* दर्द, त्वचा में लाली

* फफोले

* काली झुलसी त्वचा

* नष्ट हुई सफेद त्वचा

 जलने का स्थान, त्वचा की गहराई व कितना भाग जला है, जलने की तीव्रता दर्शात है।

 इस आधार पर बर्न्स को तीन भागों में विभाजित किया जाता है- 

1. प्रथम श्रेणी का बर्न्स (First degree Burns)- इसमें त्वचा की बाहरी परत जिसे एपीडर्मिस कहते हैं नष्ट हो जाती है। त्वचा लाल रंग की एवं सूजी हुई दिखाई पड़ती है। जलने से दर्द होता है। यह जला हुआ हिस्सा बाद में पूरी तरह सामान्य हो जाता है।

इस प्रकार के जलने में एक दो दिन बाद फफोले भी पड़ सकते हैं। सन बर्न्स, धूप से जलने पर फर्स्ट डिग्री बर्न्स का एक अच्छा उदाहरण है। इस प्रकार के बर्न्स खतरनाक नहीं होते 

2. द्वितीय श्रेणी का बर्न्स (Second degree Burns) – इसमें त्वचा की बाहरी पर्त (Epidermis) और उसके भीतर डर्मिस का ऊतक भी प्रभावित होता है। दर्द युक्त फफोले और त्वचा लाल रंग की दिखाई देती है। इस प्रकार के दग्ध में ज्यादा जलने के लक्षण मिलते हैं।

त्वचा के एकदम झुलसने से फफोले बन जाते है। घाव से पानी निकलता रहता है। इस पानी में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। ज्यादा जलने से शरीर में रक्त की कमी हो जाती है, क्योंकि पानी, इलेक्ट्रोलाइट्स और प्रोटीन शरीर में से सीरम में फफोलों के पानी में व वाक्य में निकल जाते हैं। इससे स्तब्धता (Shock) के लक्षण प्रकट हो जाते है। रोगी को बार-बार प्यास लगती है।

3. तृतीय श्रेणी का बर्न्स (Third degree Burns)- इसमें एपीडर्मिस और डर्मिस दोनों जलकर खाक हो जाते हैं। शिरा, पसीने की ग्रन्थियों, बाल आदि जल जाते हैं घाव भरने पर स्कार बनता है।

इसमें त्वचा पूरी तरह से जल जाती है। त्वचा पर फफोले व त्वचा काली अथवा सफेद नजर आती है। यदि त्वचा के 10% भाग पर दूसरी व तीसरी डिग्री का बर्न हुआ हो तो तुरन्त डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इस प्रकार के बर्न्स खतरनाक होते हैं।

 ज्यादा जल जाने पर बच्चा शॉक की अवस्था में जा सकता है, इसलिए तुरन्त ही अस्पताल जाना चाहिए। उँगलियों के जोड़ों व मुँह के जलने से कई तरह की विकृतियाँ हो सकती है l

जले हुए भाग का प्रतिशत निकालना- रूल ऑफ नाईन के सिद्धान्त पर जले हुए भांग का प्रतिशत निकालने के लिए हम शरीर की सतह को विभिन्न भागों में बाँटकर फिर प्रभावित भाग को जोड़कर सम्पूर्ण प्रतिशत निकाल लेते हैं।

1. सीने के सामने का भाग एवं उदर –       18%

2. पीठ तथा नितम्ब –                             18%

3. बायीं जाँघ तथा बायीं टाँग –                 18%

4. दाहिनी जाँच तथा दाहिनी टॉग –           18%

5. सम्पूर्ण दाहिनी भुजा एवं हाथ –             9%

6.सम्पूर्ण बायीं भुजा व हाथ                      9%

7. चेहरा, गर्दन, खोपड़ी                            9%

8. उपस्थ या जननेंद्रिय स्थल                      1%

                                                         योग 100 

Burn symptoms

बेहोशी, कब्ज का हल्का पड़ना, चेहरा पीला/ फीका पड़ना, ठंडे पसीने व ठंड लगना, साँस का तेज गति से चलना, बेचैनी, हाथ पाँव ठंडे पड़ना व व्याकुलता आदि लक्षण होते हैं।

उपचार प्राथमिक उपचार- इसके लिए शीतल जल सबसे अधिक लाभदायक होता है। इससे दग्ध की जलन कम हो जाती है तथा दग्ध की तीव्रता भी कम रहती है, पर इसका लाभ तब ही मिलता है, जब शीतल जल, दग्ध पर उसके होने पर तुरन्त बाद डाला जाये।

इस व्यवस्था के लिए जले हुए भाग पर ठंडे पानी की पट्टी रक्खें इस प्रक्रिया को हर 2-3 मिनट में दोहरायें। इससे जलन व दर्द में आराम मिलता है। बिजली से जलने पर मेन स्विच जल्दी से बन्द करें। रोगी की कब्ज व साँस का परीक्षण करें। यदि रासायनिक पदार्थों से जला हो तो तुरन्त रसायन को साफ कर दें, पानी से उस भाग को भली प्रकार धोयें। रोगी को तुरन्त आई. वी. ड्रिप के द्वारा सैलाइन शुरू कर दें घाव को भली प्रकार साफ कपड़े से ढककर रोगी को कम्बल में लपेट देना चाहिए। फफोलों को नहीं फोड़ना चाहिए। रोगी को दर्द निवारक औषधि दें। संक्रमण से घाव की भली प्रकार रोकथाम करें।

निश्चित उपचार- दग्ध के आरम्भिक दुष्प्रभाव अल्पायतन के कारण होते हैं, इसलिए अविलम्ब इलेक्ट्रोलाइट तथा प्रोटीन का आधान अन्तःशिरा द्वारा आरम्भ कर देना चाहिए। प्रथम डिग्री के बर्न्स की स्थिति में सर्वप्रथम जले हुए हिस्से को ठंडे बर्फ के पानी से साफ कर उस पर एनेस्थेटिक मरहम लगायें। इससे दर्द कम हो जायेगा। दर्दनाशक दवाई भी दी जा सकती है। धीरे-धीरे घाव पर ढीली पट्टी बाँध दें। ठंडे पानी का प्रयोग करने से दर्द, सूजन, द्रव की क्षति और बैक्टीरिया संक्रमण कम हो जाता है। कई बार जले हुए भाग को बर्फ के पानी में काफी देर तक डुबोकर रखते हैं। यह विधि 20 प्रतिशत त्वचा के जलने तक विशेष लाभकारी है। इससे अधिक जलने पर उसे अलग कमरे मे स्वच्छतापूर्वक देख-रेख करनी चाहिए।

द्वितीय और तृतीय डिग्री के बर्न्स की स्थिति में सबसे पहले मूर्च्छा (Shock) का उपचार करना चाहिए। रोगी को स्वच्छ तौलिए या चादर से ढक देना चाहिए। पलंग को पैरों की तरफ ऊपर ऊँचा कर दें। इससे मस्तिष्क का रक्त संचार बढ़ता है। दर्द नाशक दवाइयाँ जैसे मार्फीन, कोडीन आदि दी जाती हैं। प्लाज्मा, अन्य तरल पदार्थ और खनिज तत्व इन्द्रावीनस सुई के द्वारा दिए जाते हैं। बालक को गर्म रक्खें। आवश्यकता पड़ने पर रक्त का ट्रान्सफ्यूजन देना चाहिए।

टेटनस एण्टीटॉक्सिन उन रोगियों को लगाना चाहिए जिन्हें पूर्व में टेटनस टॉक्साइड का टीका नहीं लगा था। एण्टीबायोटिक दवाइयों संक्रमण दूर करने के लिए दी जाती है। इसके लिए ब्राडस्पेक्ट्रम एण्टीबायोटिक जैसे- पेनिसिलीन या एम्पीसिलीन या जेण्टामाइसिन 5-10- ‘दिनों तक दें। रोगी की ड्रिप में मल्टीविटामिन्स जरूर मिला दिया जाना चाहिए। जले हुए भाग की ड्रेसिंग

1. खुली विधि (Open Method)- जले हुए हिस्से को मरहम लगाकर अक्सर खुला रहने दिया जाता है। चेहरे, हाथ, पैर, जोड़ और गुप्तांगों को जलने पर इस विधि से उपचार करने में विशेष सुविधा रहती है।

2. विन्द विधि (Closed Method) -इस विधि में घाव को साफ कर और मरहम लगाकर पट्टी से बाँध दिया जाता है। इससे प्लाज्मा की हानि नहीं होती। इन्हें सामान्यतः 2-3 सप्ताह के बाद त्वचा की ग्राफ्टिंग (Skin grafting) करते समय निकाल दिया जाता है। ज्वर या घाव से बदबू आने पर पट्टियों को तत्काल खोल दिया जाता है।

HAEMORRHAGE-रक्तस्राव

# सिल्वर सल्फाडायजीन, सोफरामाइसिन (Soframycin), जेण्टामाइसिन (Gentamycin) क्रीम आदि दवाइयों को जले हुए हिस्से पर लगाकर ड्रेसिंग की जाती है। गहरे जख्मों को जल्दी से ठीक करने के लिए त्वचा निरोपण (Skin Grafting) किया जाता है।

Burn

[Note: कृपया डॉक्टर की सलाह, निदान और इलाज के लिए हमें संपर्क करें।]

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