LYMPHOGRANULOMA VANEREUM-.लिम्फोग्रेनुलोमा वैनीरियम / जाँघों में फूटती लसीका गाँठें

जाँघों में फूटती लसीका गाँठें क्या होता है? 

यह एक रतिज रोग है जो संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से ही होता है, क्योंकि इस रोग के कारण जननांगों में बने घावों से रिसने वाले स्राव में रोगकारक कीटाणु मौजूद रहते हैं जो संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुँच जाते हैं। इस रोग के कारण जननेन्द्रिय (लिंग की सुपारी) पर घाव सा बन जाता है। इसका उद्भवन काल (Incubation period) लम्बा (3 सप्ताह तक भी) होता है। भारत में यह रोग दक्षिण भारत में विशेष कर बंदरगाहों के आस-पास के क्षेत्रों में होता है। इस रोग को लिम्फोग्रेनुलोमा वेनेरियम के नाम से भी जाना जाता है।

Lymphogranuloma venereum

Causes of Lymphogranuloma venereum

यह रोग क्लामायडिया ट्राइकोमेलिस टाइप एल-1 से एल-3 प्रकार के जीवाणुओं के कारण फैलता है। इस रोग के कारण जननेन्द्रिय पर घाव सा बन जाता है, किन्तु जिस प्रकार यह घाव बनता है उसी तरह स्वयं ही गायब भी हो जाता है। घाव के ठीक होते ही जीवाणुओं का संक्रमण लसिका वाहिनियों द्वारा जननांगों और गुदामार्ग की लसिका नोड्स तक फैल जाता है।

Lymphogranuloma venereum

Symptoms of Lymphogranuloma venereum

इस रोग के लक्षण यौन सम्बन्ध बनाने के 5 से 21 दिनों के बीच प्रकट होने लग जाते हैं। यह रोग पुरुषों में शिश्न मुण्ड (Glance Penis) पर या महिलाओं में योनि के ऊपर एक न भरने वाले व्रण (घाव) के रूप में शुरू होता है। इसके 1 से 4 सप्ताह बाद जाँघों के जोड़ों पर गिल्टियाँ निकल आती हैं। ये नर्म और पिलपिली सी प्रतीत होती हैं। बाद में इनमें कई छेद बनकर अनेक मुँह बन जाते हैं जिनसे एक स्राव सा निकलता रहता है। स्त्रियों में इस रोग के कारण गुदा नलिका के पास स्थित लसिका ग्रन्थियाँ फूल जाती हैं तथा उनसे गुदाद्वार द्वारा तीव्र खारिश व जलन के साथ रक्त एवं पीव मिश्रित स्राव निकलने लग जाता है। रोग के थोड़ा पुराना हो जाने पर गुदा और उसके अंदर सूजन आ जाती है जिससे मलत्याग में रुकावट भी उत्पन्न हो जाती है तथा रेक्टल स्ट्रेक्चर की स्थिति बन जाने से भगन्दर जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं। उपरोक्त लक्षणों के साथ-साथ रोगी में ज्वर, जोड़ एवं हड्डियों में दर्द, त्वचा पर चकत्ते आदि निकल आते हैं।

रोग निदान एवं सम्बन्धित परीक्षण

लैंगिक संसर्ग के 2-3 सप्ताह बाद जननांगों पर एक छोटे से व्रण के बन जाने के बाद उसी ओर के वंक्षणीय प्रदेश में वेदनायुक्त बहुकोष्ठकी वंक्षणीय गाँठ (ब्यूबो-Bubo) के बन जाने से रोग का निदान हो जाता है। सम्बर्धन (Culture) -जो गाँठ फूटी हुई न हो उससे पस खींचकर उसका सम्बर्धन करके जीवाणुओं को अलग करके पहचान लिया जाता है जिससे निदान हो जाता है।

‘फ्राई’ का अन्तस्त्वचीय परीक्षण-यह ब्यूबो के प्रकट होने के 2-3 सप्ताह पश्चात् पौजीटिव हो जाता है। इसमें लाइग्रेनम का ( जीवाणुओं की वृद्धि से व्यापारिक रूप में तैयार किया गया एण्टीजन) 1 मिली. का इन्जेक्शन त्वचा के नीचे लगाया जाता है, तो परीक्षण धनात्मक होने पर इन्जेक्शन लगने के स्थान पर 48 घण्टे बाद एक उठी हुई लाल पिटिका दिखाई देती है। तीव्र केसों में कॉम्प्लीमेट फिक्सेशन जाँच ज्यादा विश्वसनीय होती है।

रोग का परिणाम

यदि इलाज जल्दी ही शुरू कर दिया जाय और रोगी को माफिक आ जाये तो जल्दी ही वह रोग मुक्त हो जाता है।

संक्रमण के महीनों अथवा वर्षों के बाद उपद्रव स्वरूप मूत्रमार्गीय संकीर्णता एवं मूत्रमार्गीय नालव्रण या भगन्दर हो जाता है। मलाशय शोथ हो जाता है जिसके पश्चात् मलाशय निकोचन हो जाता है जिससे फीते के समान मंल निकलता है।

Lymphogranuloma venereum

 Note  गुदा में, मलाशय एवं मूत्राशय में तथा मलाशय एवं योनि में भगन्दर बन सकता है।

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