Treat Dysentery

DYSENTERIES-पेचिश / प्रवाहिका

रोग का परिचय

Treat Dysentery

मल त्याग के समय और उससे पहले भी पेट में मरोड़ और आँतों में ऐंठन होती है। इसी को पेचिश या प्रवाहिका कहते हैं। मल में मवाद जैसे सफेद थक्के (क्लोट) गिरते हैं। पेचिश या प्रवाहिका को परखने के लिये ये दो लक्षण पर्याप्त हैं।

रोग के प्रमुख कारण

Symptoms

1. दस्त लगते रहने पर पर्याप्त देखभाल न करने पर।

2. दस्त को बन्द करने का उपाय न किया जाये अथवा दस्त रुक जाने के बाद भी यदि पाचक तंत्र को सुधारने के लिये आवश्यक कदम न उठाये जायें तो रोग उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

3. जिस व्यक्ति को अत्यधिक तला हुआ, अत्यधिक तीखा, अत्यधिक गर्म, अत्यधिक मिर्च मसालेदार पदार्थ नियमित रूप से खाने की आदत हो, उसे भी पेचिश हो जाती है।

4. समय-असमय और प्रकृति विरुद्ध भोजन करने पर पाचन क्रिया के विकृत हो जाने पर ।

5. यकृत की खराबी से।

6. जो व्यक्ति खाने में वानस्पतिक घी (डालडा) का उपयोग अपने भोजन में नित्य प्रति लगातार करते हैं, उन्हें यह रोग अधिक होता है।

7. जीर्ण मलावरोध की स्थिति में।

रोग के प्रमुख लक्षण

1. पेट में सुई चुभने जैसी पीड़ा होती है, जरा-जरा सी देर में पाखाना जाने की इच्छा होती है, भूख बन्द हो जाती है, पेट पर अफारा हो जाता है. रोगी के शरीर से बदबू आती है-ये मुख्य लक्षण हैं। 

2. जब प्रवाहिका में मल के साथ रक्त भी निकलने लगे, तो उसे रक्त प्रवाहिका कहते हैं। 

3. प्रवाहिका के प्रारम्भ में अग्निमांद्य, अतिसार और पेट में दर्द के लक्षण होते हैं।

4. मल त्याग के समय और उससे पहले भी पेट में मरोड़ और आँतों में ऐंठन होती है । मल त्याग के समय थोड़ा जोर लगाना पड़ता है और थोड़ा धैर्य भी रखना पड़ता है, तब जाकर कहीं जरा-सा मल बाहर निकलता है। उसमें अधिकांश रूप से मवाद जैसे दिखाई देने वाले पदार्थ होते हैं।

5. इस रोग में रोगी जैसे ही मल त्याग करके उठता है और शौचालय से बाहर निकल बिस्तर पर बैठता है कि इतनी देर में फिर ऐंठन शुरू हो जाती है और फिर शौच की इच्छा होती है। इस प्रकार उसे बार-बार शौच के लिये भागना पड़ता है।

Types of dysentery 

यह रोग दो प्रकार का होता है-

1. अमीबिक प्रवाहिका (Amoebic dysentery) 

2. बेसिलरी प्रवाहिका (Bacillary dysentery)

1. अमीबियासिस (Amoebiasis)

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परिचय- इसे खूनी पेचिश भी कहते हैं जो बड़ी आंत्र (colon) में ऐंटामीबा हिस्टोलिटिका नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। इसमें प्रतिदिन 3-4 दस्त आते हैं। साथ ही बड़ी मात्रा में आये पतले दस्त के साथ काला-लाल (Dark-Red) रक्त सामान्यतः पाया जाता है। इस रोग की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें रोगी को बार-बार मल (Stool) के साथ ऑव आती है और इसके साथ-साथ उसे मरोड़ भी होती है।

विशिष्ट लक्षण-

1. सर्वप्रथम अतिसार उत्पन्न होता है जो कई दिनों तक चलता है।

2. उदरमूल और मल के साथ प्रवाहरण होता है।

3. प्रायः तापक्रम सामान्य रहता है।

4. तीव्र अवस्था में रोगी 2-4 घण्टे में लगभग 12 बार या इससे भी अधिक प्रवाहरण के साथ मल त्याग के लिये जाता है।

5. मल की मात्रा में कम पर श्लेषमा (Mucous) अधिक होता है तथा थोड़ी मात्रा में रक्त भी पाया जाता है।

6. दस्त अधिक दुर्गन्धित होता है। कभी-कभी रक्त व ऑव अनुपस्थित रहती है।

 7. रोगी को काफी दिनों से पतले मल में अथवा खून (या दोनों) की शिकायत होती है. किन्तु बीच में रोगी का मल सामान्य हो सकता है अथवा कब्ज की शिकायत हो सकती है।

 8. इसके अतिरिक्त-पेट में ऐंठन युक्त दर्द, मल त्याग के बाद भी मलाशय में मल की उपस्थिति का एहसास, हल्का बुखार, भूख न लगना आदि लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।

 9. इस रोग में जीर्ण अवस्था की स्थिति में रक्ताल्पता तथा निर्बलता विशेष रूप से होती है।

2. बेसिलरी प्रवाहिका (Bacillary Dysentery)

Diarrhea Dysentery

परिचय -यह प्रवाहिका न होकर एक प्रकार अतिसार ही है, जो बहुत घातक होता है। इसमें रोग का कारण अण्डाणु होते हैं। इसमें तीव्र ज्वर आता है। इसे ज्वरातिसार कहना अधिक उपयुक्त है। इसमें 10,20,30.50 बार तक पतले दस्त होते हैं। पेट में ऐंठन के साथ दर्द होता है। दस्त में म्यूकस और रक्त दोनों होते हैं। इस प्रकार के मरोड़ के साथ 102°F तक ज्वर रहता है। अधिक मात्रा में मल त्याग होने से रोगी अधिक कमजोर हो जाता है

प्रमुख कारण

बड़ी आँत में मल तथा श्लेष्मा के संचय होने पर 3 प्रकार के दण्डाणु स्थान संश्रय करके पेचिश उत्पन्न करते हैं। ये अग्र हैं-

1. शीगा बेसिलस

2. सोने वेसिलस

 3. शीगा फ्लेक्शनरी

प्रमुख लक्षण

रोगी प्रायः युवा व्यक्ति होता है जो रोग की प्रारम्भिक अवस्था में उदर शूल तथा अतिसार से पीड़ित होता है। ज्वर 102 डि. फा. तक हो सकता है। मल प्रवाहरण के साथ-साथ बार-बार जाने लगता है पर प्रत्येक बार मल थोड़ा होता है। मल के साथ श्लेषमा और रक्त भी कुछ मात्रा में निकलते हैं। मूत्र की मात्रा कम होती है। स्पर्श करने पर उदर में स्पर्शी सध्यता मिलती है।

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