What is glaucoma
Glaucoma एक गंभीर आंखों की बीमारी है, जिसमें आंखों के अंदर दबाव (आंतरिक दबाव) बढ़ जाता है, जो ऑप्टिक नर्व (आंख की तंत्रिका) को नुकसान पहुंचा सकता है और दृष्टि हानि का कारण बन सकता है। अगर इसे समय पर इलाज न मिले, तो यह अंधेपन का कारण बन सकता है। ग्लूकोमा आमतौर पर बिना किसी प्रारंभिक लक्षण के विकसित होता है, इसलिए इसे “चुपके से दृष्टिहीनता” भी कहा जाता है। बढ़ा हुआ अन्तर नेत्र दबाव (सामान्यतः यह 16 से 23 मिमी०)। आँख में दबाव बढ़ने से दृष्टि तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ता है और उससे दृष्टि मन्द हो जाती है। यह अधिकतर 40 वर्ष की आयु के बाद होता है, कभी-कभी जन्म से ही हो सकता है। यही ग्लुकोमा और नीला मोतिया है।

Types of Glaucoma
1. सिम्पल (ओपन ऐंगल) ग्लुकोमा-
यह काला मोतिया की सबसे आम किस्म है जो आँख से द्रव बाहर ले जाने वाली निकास नलियों के सँकरी हो जाने से होता है। इससे दव की निकासी धीमी हो जाती है और आँख के भीतर द्रव की मात्रा बढ़ी रहने से आँख का आंतरिक दाब भी बढ़ जाता है। यह विकार 40 से 70 वर्ष की उम्र में अधिक पाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ इससे समान रूप से प्रभावित होती हैं। शुरू में यह भनक भी नहीं मिलती कि आँखें काला मोतिया से घिर आयी है। बस, समय के साथ आँखों का दृष्टि क्षेत्र घटता चला जाता है। हालांकि केन्द्रीय दृष्टि बिलकुल आखिर तक साफ बनी रहती है। कुछ लोगों में नजर कमजोर होने के साधारण लक्षण भी पाये जाते हैं-पढ़ने के चश्मे का नम्बर बार-बार बदलता है. कम रोशनी में देखने में दिक्कत होने लगती है।
जैसे-जैसे नजर का दायरा घटता है, चलने-फिरने में भी मुश्किल आती है। पूरा दृश्य साफ न होने से टाँगें चीजों से उलझने लगती हैं, पाँव लडखड़ा उठते हैं और सिर को बार-बार इधर से उधर ले जाने से ही रास्ता दीखता है। इलाज के बिना दृष्टि बराबर गिरती जाती है और एक समय ऐसा आ जाता है कि आँख देख नहीं पाती। गनीमत यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में प्रायः कई वर्ष बीत जाते हैं और इस बीच रोग का पता चल जाये तो आँख की रोशनी बच सकती है।
2. क्लोज्ड ऐंगल ग्लुकोमा
इसके लक्षण शुरू से ही साफ दिखायी देते है। पहले-पहल उसमें आँख का दाब कभी-कभी बढ़ता है। सुबह के पहर में और कम रोशनी में या जब आदमी थका-हारा होता है या मन बेचैन होता है या वह उत्तेजित होता है तो अचानक आँख में और आँख के इर्द-गिर्द दर्द होने लगता है, नजर धुंधली हो जाती है और बल्ब तथा वाहनों की हैडलाइट के आस-पास इन्द्रधनुषी रंग दीखने लगते हैं। ये लक्षण चन्द मिनटों से चंद घण्टों तक रहते हैं और उसके बाद गायब हो जाते हैं। लेकिन कुछ दिनों, हफ्तों या महीनों बाद ये इसी तरह फिर उभर आते हैं। यह क्रम कुछ समय तक इसी रूप में बना रहता है।
बढने के दौर नियमित होते जाते हैं। इस बीच आँख कभी भी काला मोतिया के उग्र दौर का शिकार हो सकती है। ऐसी स्थिति में-आँख में भयानक दर्द होता है, इतनी पीड़ा होती है कि कै आ जाती है और नजर बिलकुल धुंधली पड़ जाती है। अगर ठीक इलाज नहीं मिलता तो नजर गँवाने का पूरा अंदेशा होता है। उनकी दृष्टि का प्रभावी क्षेत्र (कुछ ही व्यक्तियों का) छोटा हो जाता है। अगर कोई आगे भी लापरवाह रहता है, तो आँख बिलकुल अंधी हो जाती है।
Causes of glaucoma
यह रोग पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है। आँख पर बाहरी दबाव पड़ने से अथवा किसी कारणवश शिराओं में रक्त की मात्रा के बढ़ने से या फिर अशुद्ध खून ले जाने वाली शिराओं में खून का आयतन कम हो जाने से काला मोतिया हो जाता है। नेत्र के अन्दर के तत्व जैसे कि चक्षुजल की मात्रा बढ़ जाये और इसका उत्पादन अधिक हो व निकास कम हो, ऐसी स्थिति में काला मोतिया बनने की प्रबल सम्भावना रहती है।
काला मोतिया जन्मजात भी होता है। ऐसा द्रव निकासी वाली नलियों के ठीक से न बनने के कारण होता है। पर यह कुछ ही बच्चों को होता है। कुछ दवायें भी ग्लोकोमा पैदा कर सकती हैं। इनमें स्टीरॉयड (डेक्सामेथासोन, विटामेथासोन, हाइड्रोकार्टीजोन, प्रेडनीसोलन नेत्र ड्रॉप्स, मरहम व गोलियाँ) सबसे बड़े दोषी हैं। मिलावटी सरसों के तेल का इस्तेमाल करने से काला मोतिया बनने की सम्भावना रहती है।

Symptoms of glaucoma
काला मोतिया किसी भी किस्म का हो, उसका बुरा असर आँख के सभी अवयवों पर होता है। पर जो नुकसान दृष्टि तंत्रिका का होता है, उसकी भरपाई नहीं हो सकती। दाब बढ़े रहने से उसका पोषण करने वाली रक्त धमनियों में खून का दौरा घट जाता है और परिणामस्वरूप उसके नाजुक तार एक-एक कर नष्ट होते जाते हैं। तंत्रिका सूखती जाती है और दृष्टि सिमटती जाती है। कई बार शुरू में तो इसका पता ही नहीं चलता और आँख नजर गवाँ बैठती है।
काला मोतिया का हर सातवाँ मरीज एक आँख की रोशनी खो लेने के बाद ही इलाज के लिये डॉक्टर के पास पहुँचता है। कुछ इससे भी ज्यादा बदकिस्मत होते हैं और दोनों ही आँखें गँवा बैठते हैं। इस स्थायी क्षति का कोई समाधान नहीं होता।

रोग की पहचान
35 से 40 वर्ष की उम्र के लोग जिन्हें दिखायी कम देने लगे, अंतर नेत्र दबाव बढ़ा हुआ हो, देखने के क्षेत्र में कमी आदि होने पर रोग की पहचान हो जाती है। वैसे यह रोग नेत्रीय जाँच द्वारा ही पहचाना जाता है। सिंपल ग्लुकोमा में आँख के पर्दे की जाँच रोग का शक पैदा करती है। पर्दे की सतह में खास परिवर्तन नजर आते हैं। टोथेमीटर यंत्र से दाब मापने पर दाब बढ़ा हुआ हो,
तो यह काला मोतिया होने का पक्का सबूत है। क्लोज्ड ऐंगल ग्लुकोमा में रोग की पहचान आरम्भिक अवस्था में जरूरी है। मरीज द्वारा बताये गये रोग के लक्षण डॉक्टर को काला मोतिया के प्रति सचेत कर देते हैं। नेत्रीय जाँच से भी यह पता चल जाता है कि आँख की बनावट क्लोज्ड ऐंगल ग्लुकोमा पैदा करने वाली है या नहीं। आँख का आन्तरिक दाब भी देखा जाता है, यद्यपि वह हर समय बढ़ा हुआ नहीं रहता है ।

रोग का परिणाम
समय से पहचान होना ही काला मोतिया के इलाज की पहली शर्त है। मरीज के लिये यह समझाना बेहद जरूरी है कि रोग जड़ से नहीं जाता। लेकिन इलाज लेते रहने से दाब को हर समय काबू में रक्खा जा सकता है और आँखों की रोशनी बचाई जा सकती है। इसके लिये उसे समय-समय पर आँखों के डॉक्टर के पास भी जाते रहना चाहिये। इलाज पूरी उम्र चलता है, लेकिन यह जानकर मायूस नहीं होना चाहिये और न कभी लापरवाही बरतनी चाहिये। इसी से दृष्टि सुख बना रह सकता है।
रोगी को समय पर उचित चिकित्सा न मिलने से दृष्टि मन्द पड़कर अंत में स्थायी अंधापन आ जाता है।
CONJUNCTIVITIS- आँखें दुखना/आँखें आना
गुहेरी (स्टाई)/पलक के नीचे फुंसी