What is pleurisy
फेफड़ों को ढकने वाली झिल्लियों (म्यूकस मेम्ब्रेन) में जीवाणु संक्रमण अथवा फेफड़ों की अन्य बीमारियों आदि के कारण उनमें शोध हो जाता है तो उसे प्लूरिसी’ कहते है।
Causes of pleurisy
1. अधिकतर यह रोग जीवाणुओं के संक्रमण के बाद होता है।
2. दूसरी श्वसन तंत्र की बीमारियों के बाद में उत्पन्न होता है जैसे- निमोनिया, पल्मोनरी इन्फार्शन, टी. बी. फुफ्फुस विद्रधि (Lungs abscess) आदि।
3. छाती में बाहरी चोट लगने से व पसलियों कें रोग होने पर।
4. अन्य कारणों से जैसे-आमवात ज्वर, अस्थि सन्धि शोथ, पूरीमियाँ, सेप्टीसीमियाँ ।
Symptoms of pleurisy
दर्द, ज्वर और खाँसी ये 3 प्रमुख लक्षण होते दर्द- छाती में तीव्र दर्द, जो साँस लेने के साथ अथवा छींकने, खाँसने और जम्भाई लेने से होता है। रोगी दर्द में आराम से न सो पाता है न बैठ पाता है। उसको छाती में ऐसा लगता है जैसे कोई तेज धार की वस्तु काटती है। पीडा स्तनों के पास होती है और खाँसने पर बढ़ती है।
ज्वर – तापक्रम 100-104° F तक पहुँच जाता है। खाँसी-सूखी खाँसी, जो दर्द के साथ व बलगम रहित होती है।

नोट
यह रोग अधिकतर क्षयरोग(ट्यूबरकुलोसिस) से उत्पन्न होता है।
रोग की पहचान
रोग के लक्षणों के आधार पर। प्रभावित तरफ की छाती साँस लेने पर कम फूलती है। साँस भी पूरी नहीं आती। • साँस लेने पर छाती के अंदर प्लूरल रख की आवाज आती है।
रोग का परिणाम
प्रत्येक फेफड़ा प्लूरा की दो परतों से ढका रहता है, दोनों परतों के बीच में द्रव इकट्ठा होने से रोगी को छाती में दर्द व लम्बा साँस लेने में कठिनाई, बुखार व खाँसी होती है। रोगी हमेशा बेचैनी अनुभव करता है। शुष्क प्रकार में adhesions और फुफ्फुसीय यक्ष्मा हो सकते हैं।
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