क्या है हड्डियों का टेढ़ापन
यह 4 मास से लेकर 2 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों में होने वाला रोग है। इस रोग में शिशु में वसा व पेशियों का क्षय हो जाता है। साथ ही बढ़ोत्तरी रुक जाती है एवं शरीर का वजन घट जाता है। आँखें अन्दर को धँस जाती हैं, त्वचा शुष्क हो जाती है। त्वचा विशेष कर नितम्बों तथा जंघाओं पर ढीली-ढीली होकर थैलियाँ सी लटक जाती हैं। इस रोग को अस्थि मृदुता, फक्क, वालास्थि विकृति आदि नामों से भी जाना जाता है।

रोग के कारण
यह रोग ‘कैल्शियम और विटामिन ‘डी’ की कमी के कारण होता है। जो माँ सन्तुलित आहार नहीं ले पाती है उसके दूध में विटामिन ‘डी’ की कमी हो जाती है। इसके अतिरिक्त रक्त की कमी, माँ के दूध का अभाव एवं धूप रहित अंधकारमय जगह में शिशु का निवास आदि इसके कारण हैं। हमारे देश में दुर्भाग्यवश गरीबी के कारण बच्चे बहुधा इस रोग का शिकार हो जाते हैं।

रोग के लक्षण
लक्षण अधिकतर पहले वर्ष के अन्त या दूसरे वर्ष में आते हैं। बालक बेचैन सा होता है और उसके शरीर से अधिक पसीना (Sweating) आता है। सिर बड़ा एवं माथा उभरा हुआ होता है। स्टर्नम आगे की ओर झुकी हुई होती है एवं छाती के निचले बार्डर पर एक ग्रूव होता है। दाँत विलम्ब से निकलते हैं। रीढ़ की हड्डी सामान्यतः पार्श्व की ओर टेढ़ी होती है। कलाई और टखने की हड्डी बढ़कर बाहर की ओर मुड़ जाती है। पेट की माँसपेशियाँ कमजोर पड़ जाने से फूल जाती हैं। बाल शुष्क व खुरदरे हो जाते हैं। पसलियों में विशेषकर चौथी, पाँचवीं, छठी पसली के बीच स्पष्ट दिखाई देने वाली सूजन होती है | शारीरिक वृद्धि में रुकावट आ जाती है। पैर घुटने से नीचे बाहर की तरफ मुड़ जाते हैं। हाथ की उँगलियों के जोड़ भी आकार में बड़े तथा उभारदार मिलते हैं। पेट में आमाशय थैली स्पष्ट दिखाई देती है।
नोट- ऐसे बच्चे का वक्ष किनारों से दबकर आगे को कबूतर के सीने जैसा उभर आता है। हाथ-पैर की अस्थियों में संधियों (Joints) का आकार बड़ा हो जाता है। चलने-फिरने पर पैर नियत स्थान पर न पड़कर इधर-उधर बहक जाते हैं। हाथ की अंगुलियों के जोड़ भी आकार में बड़े तथा उभारदार मिलते हैं। रोगी बच्चे को फूला-फूला अपचदार सफेद रंग लिये हुये कई बार मलत्याग होता रहता है जो बहुत पतला नहीं होता।
रोग की पहचान
यह बीमारी 6 महीने से लेकर 2½ से 3 साल तक के बच्चों को हुआ करती है। 3 साल से अधिक करती। आयु वाले बच्चों को प्रायः नहीं हुआ
रात में बेचैनी तथा सिर में पसीना आना तथा सिर दायें-बायें हिलाते रहना, सीने पर चुचुक के बाहरी तरफ चौथी, पाँचवीं तथा छठी पसलियों में गाँठों का पाया जाना, शाखाओं की सन्धियों का आकार बड़ा होना आदि लक्षण एवं चिन्हों के मिलने से रोग को आसानी से पहचाना जा सकता है।
रोग का परिणाम
बिना उपद्रव (complication) का रोग घातक नहीं होता है, किन्तु इसके उपद्रय विशेषकर ब्रोन्कोन्यूमोनिया तथा अतिसार बढ़ कर घातक रूप धारण कर सकते हैं। रोग बढ़ने पर हड्डियों की बढ़ोत्तरी रुक जाती है। बौनापन आ जाता है। बच्चों को कम्हेड़े (Convulsions) और टिटैनी के दौरे पड़ते हैं। लम्बे समय तक रहने वाले रोग में (In long standing advanced cases) डिफारमिटी स्थायी हो जाती है।