परिचय
यह फैलने वाला यौन रोग है। इसमें नवजात शिशु के नेत्रों में जब प्रसव के तीन सप्ताह के अन्दर लालिमा (Redness) और शोथ (Inflammation) होकर पूययुक्त स्राव होने लगता है तो इस अवस्था को ‘आफ्थाल्मिया न्योनेटोरम’ कहा जाता है।

रोग के कारण
यह गोनोकॉकस नामक बैक्टीरिया के तीव्र संक्रमण के कारण होता है। यह रोग अधिकांशतः सुजाक रोग से पीड़ित स्त्री के प्रसव के समय शिशु का सिर जब योनि में पहुँचता है तो उसकी योनि में उपस्थित सुजाक के जीवाणु का संक्रमण शिशु की आँखों में हो जाता है। इसके अतिरिक्त भी अन्य कई जीवाणुओं जैसे बी प्रोटिएस तथा स्टेफाइलोकोकस आरियस भी इस रोग का कारण बनते हैं। इसका संक्रमण (Infection) भी प्रसव के समय योनि से शिशु की आँखों में हो जाता है। कभी-कभी इन्फैक्शन प्रसव के बाद गन्दे कपड़ों अथवा स्त्रियों के अशुद्ध हाथों से शिशु की आँखों में पहुँच जाता है। सीडोमोनास अर्जीनोसा नामक जीवाणुओं के संक्रमण के कारण यह रोग बड़ी तीव्रास्था में हो जाता है। कई बार आँखों में जन्म के बाद सिल्वर नाइट्रेट डालने से भी उत्तेजनावश आँखें पक जाती हैं।

रोग के लक्षण
यह आँखों का गम्भीर रोग है। इसमें प्रसव के लगभग 2-3 दिन बाद ही नेत्र श्लेष्मकला में लालिमायुक्त शोथ हो जाता है जिससे शिशु की पूरी आँख तथा पलकें लाल हो जाती हैं। शोथ के कारण पलकें मोटी हो जाती हैं। आँखों में से पीवयुक्त चिपचिपा गाढ़ा पदार्थ निकलता है। दोनों पलकें चिपक जाती हैं। पलकें और आँखें सूज जाती हैं और कार्निया में छाले या घाव बनने का खतरा रहता है। आँखों से स्राव बराबर निकलता रहता है। दूर से देखने से ही आँखों में सूजन प्रतीत होती है। यदि अँगुलियों से पलकें हटाकर शिशु की आँख खोली जायें तो आँख के अन्दर इधर- उधर बहुत सा स्राव उपस्थित मिलता है और पूरी आँखें लाल मिलती हैं। संक्रमण अधिक बढ़ जाने पर आँख में माड़ा-जाला (Corneal opacity) बन जाता है और आँख की ज्योति हमेशा के लिये समाप्त हो जाती है।
